असम की हिंसा और बोडो जनजाति

आज भारत के दक्षिणी राज्यों में निवास कर रहे पूर्वोत्तर राज्यों के लोग भयभीत है, डरे है उन पर नियोजित ढंग से एक संप्रदाय विशेष के लोगों द्वारा हमले हो रहे है और उन्हें उन राज्यों से निकलने के लिये मजबूर किया जा रहा है। जब कि असम में चल रहे नरसंहार से न तो उनका कोई लेना देना है और न ही वह असम की हिंसा में कहीं भी हिस्सेदार हैं । ये वे लोग है जो असम में भी मारे जा रहे है और दूसरे राज्यों में भी। कोकराझार और धुभरी में हुयी हिंसा के लिये ये लोग जिम्मेदार नहीं है। यह घृणित कार्य बंगलादेश के उन घुसपैठियों के द्वारा किया जा रहा है जो असम की राजनैतिक अस्थिरता में वर्षों से सामिल है। देश की पूर्वी सीमा से भारत में घुसपैठ के अनेकों रास्ते है लेकिन सर्वाधिक घुसपैठ बंगलादेश से असम की सीमा पर होती है क्योंकि असम और बंगलादेश की सीमा काफी कुछ खुली हुई है। खेत से खेत, और गांव से गांव मिले हुये है आवागमन के लिये वहां नदियों का प्रायः इस्तेमाल किया जाता है नदी के रास्ते दोनों देशों के आवागमन के इस रास्ते को रोकने का भी उचित प्रबन्ध नहीं है दोनो देशों के बीच सीमा के इस सुविधा का लाभ बंगलादेशी घुसपैठिये तो लेते ही है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय आतंकवादी भी भारत में अफरातफरी पैदा करने के लिये इन्हीं रास्तों का इस्तेमाल करते है नेपाल और बंगलादेश की सीमायें वर्षों से देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये संवेदनशील माने जाते रहे है । देश में कही भी घुसपैठ को रोकने के लिये और अवैध ढंग से भारत के किसी भी प्रान्त में प्रवेश करने वालों के विरूद्ध संविधान में जो व्यवस्था दी गई है। उसके ठीक उलट असम में घुसपैठ करने वालों के लिये कानून (I N D T) बनाकर इंदरा सरकार ने असम में घुसपैठियों के लिये रास्ता आसान कर दिया था। देश के दूसरे हिस्सों में प्रवेश करने वालों को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी अपने उपर लेनी होती है जबकि असम में घुसपैठ करने वालों को दोषी ठहराने की जिम्मेदारी असम पुलिस की होती है। सघन मुस्लिम आवादी के बीच घुसपैठियों की पहचान और उनके खिलाफ सबूत जुटाना आसान नहीं होता नतीजतन जो भी घुसपैठियें पकड़े जाते है बड़ी आसानी से छूट जाते है विधानसभा और लोकसभा मतदान के पूर्व असम में भारी घुसपैठ होती है और प्रदेश सरकार उस घुसपैठ की अन्देखी करती है क्योंकि संप्रदाय विशेष के वे घुसपैठिये असम में पार्टी विशेष की सरकार बनवाने में भरपूर मदद करते है। इसलिये तमाम हिंस, अराजकता, बाढ़ और गरीबी के बावजूद असम की गगोई सरकार को कोई हटा नहीं सका।

2003 में जब मैं केन्द्र में गृहराज्यमंत्री था मुझे पूर्वोत्तर राज्यों का प्रभार दिया गया था। मेरी जिम्मेदारी पूर्वोत्तर राज्यों में शांति और सुरक्षा बहाल करने की थी उस क्रम में सन 1950 से ही चल रहे बोडो जनजाति की मांगों को समझने का अवसर मुझे मिला और मैने पाया कि वह सभ्य और सुसंस्कृत जंगली जाति उन सभी सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति जो किसी भी सभ्य देश या शहर के लिये गर्व की वस्तु होती है। उनमें देखा जा सकता है गायन, वादन, नृत्य, सगीत, कढ़ाई, बुनाई, खाना बनाना घर की साज सज्जा और साफ सुथरा रहने का सामुहिक प्रयास मैने उन लोगों में देखा है। वे इन देश विरोधी लोगों से सताये जाते रहे है और बंगलादेश बनने के बाद बंगलादेशी घुसपैठियों के उत्पीड़न और अत्याचार का शिकार होते रहे है असम सरकार भी अल्पसंख्यकों के नाम पर उनकी ही मदद करती रही और उन्हें ही संरक्षण देती रही । इन सब स्थितियों को देखते हुये मैने संघर्षरत संगठनों में से एक बोडो लिबरेशन टाईगर्स के कमाण्डर हंग्रामा से बातचीत शुरू की और पाया कि वे लोग देश की सीमाओं और स्वाधीनता के प्रति उतने ही जागरूक और निष्ठावान है जितना हम दूसरे प्रदेशों के लोग। उनकी तीन ही मांग थी पहली बोडो भाषा को संविधान की आठवी अनुसूची में सम्मिलित किया जाये। दूसरी बोडो जनजाति बहुल असम के चार जिलों को एक स्वायत्तशासी क्षेत्र बनाकर स्थानीय विकास का अवसर प्रदान करना। तीसरी उन तमाम युवक और युवतियों को मुख्य धारा में वापस लेना जो हथियार उठाकर बोडो आन्दोलन के नाम पर बागी हो गये थे। 6 दिसम्बर 2003 को असम के राज्यपाल श्री अजय सिंह वहां के मुख्यमंत्री श्री तरूण गगोई तथा भारत के उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण अडवाणी के समक्ष 2623 नवयुवक और युवतियों ने अपने हथियार डाल कर मेरे सामने राष्ट्र को समर्पित होने का संकल्प लिया था और उसमें से लगभग 1500 लोग जिन्हें सुरक्षा बलों में सेवा के योग्य समझा गया था भर्ती कर उन्हें पुर्नवास दिया गया था उनमें से अधिकांश लोग आज भी ITBP के सैनिक बनकर सीमाओं की सुरक्षा कर रहे है। जैसे कलकत्ता आज सभी प्रदेशों के नागरिकों का व्यावसायिक केन्द्र है ऐसे ही गोहाटी भी हुआ करता था, लेकिन वहां की जनजातियों पर जिस तरह एक संप्रदाय विशेष के लोगों का हमला निरन्तर होता रहा और जनजातिये युवकों की शिक्षा रोजगार और जीवन की न्यूनतम जरूरतों के प्रति उपेक्षा के रवैया स्थानीय सरकारों के द्वारा अपनाया गया उससे वे अलग थलग पड़ गये। पहले भी एक बार उन्हीं पूर्वोत्तर राज्यों के युवक युवतियों को उस समय हिंसा का शिकार बनाया गया था जब वह ट्रेन में दिल्ली जा रहे थे ये घटना बिहार और दिल्ली में हुयी थी जिसे रेलवे भर्ती के दौरान असम में हुयी हिंसा की प्रतिक्रिया बताया गया था पूर्वोत्तर राज्यों में जब भी कहीं हिंसा भड़कती है तो उसके पीछे हाथ तो विदेशीयों का होता है लेकिन सजा देश के निर्दोष युवक और युवतियों को चुकाना पड़ता है। असम की हिंसा में असम के सरकार की लापरवाही कोई नई नहीं है और वह अनजाने में हुयी है ये भी मैं नही मानता हूं कोकराझार स्वायत्तशासी क्षेत्र में निकाय का चुनाव होना था घुसपैठिये उस निकाय पर अपना कब्जा जमाना चाहते थे और बोडो जनजाति को डरा धमका कर निर्वाचन प्रक्रिया से दूर रखना चाहते थे। इसीलिये इस हिंसा के लिये जिम्मेदार प्रेदश सरकार को इस सम्पूर्ण घटनाक्रम की जिम्मेदारी अपने उपर लेनी चाहिए और केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह निहायत गैर जिम्मेदार गगोई सरकार को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लागू करे और पूरे देश में फैले पूर्वोत्तर के जनजातियों की सुरक्षा को तत्काल प्रभाव से सुनिश्चत कराये।