करोना का कहर जारी है देश विदेश मे संक्रमितों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है उस अनुपात में लोग ठीक नहीं हो रहे हंै जिस अनुपात में संक्रमण बढ़ रहा है। पूरे विश्व में मरने वालों की तादात भय पैदा करती है जो देश जितना विकसित और समृद्ध है वहां अन्य देशों की तुलना में महामारी का प्रभाव ज्यादा दिखाई पड़ रहा है। लम्बे लाॅकडाउन का भी थोड़ा बहुत लाभ जो दिख रहा है वह भारत के कुछ प्रदेशों और जिलों में जरूर दिख रहा है लेकिन यह महामारी किसी जिले या प्रदेश की न होकर विश्व व्यापी है। विश्व का शायद ही कोई देश हो जिसे इस महामारी ने अपना क्षेत्र न बनाया हो तमाम भौतिक उपाय किये जा रहे हंै। राजनयिक सामाजिक और वैज्ञानिक उपाय नाकारा सबित हो रहे हैं। अब तक इसकी कोई वैक्सीन नहीं बन सकी आयुर्वेद और योग में भी इस बीमारी का कोई निदान मिलता दिखाई नहीं पड़ रहा है। श्री श्री रविशंकर की आर्ट आॅफ लिविंग और राम देव का योग इस महामारी के सामने घुटने टेक चुका है। पूरे संसार के वैज्ञानिक औषधि विशेषज्ञ और चिकित्सक इसका इलाज खोजते खोजते खुद इसके मरीज बनते जा रहंे है। पुलिस और प्रशासन के बल पर लाॅकडाउन लागू कर लेना किसी भी सरकार के लिये मुश्किल काम नहीं है लेकिन इन उपायों का कोई असर कोरोना के बढ़ते कदमों को रोक नहीं पा रहा है। मोदी जी की पहल विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित अवश्य करती है लेकिन उनके द्वारा भी कोई विश्वसनीय आश्वासन दुनिया को मिलता दिखाई नहीं दे रहा है। ये महामारी कब तक चलेगी और कहां तक जायेगी इसका अनुमान अब तक नहीं लगाया जा सका इस बीमारी का वायरस कहां से चला किसकी साजिश थी और किसकी असावधानी से ये पूरे विश्व में फैल गया इसकी पुष्टि जानकारी कोई नहीं दे पा रहा है। जबकि वायरस है जो फैलता ही जा रहा है अब तक की बड़ी बड़ी बीमारियों डेंगू चिकनगुनिया स्वाइनफ्लू और मस्तिष्क ज्वर ने भी समय समय पर जन मानस को प्रभावित किया था लेकिन यह पूरे विश्व की बीमारी नहीं थी अलग अलग देशों और प्रदेशों में इन बीमारियों का जन्म तो हुआ लेकिन समय की सावधानी और वैज्ञानिकों की सूझ-बूझ से इन पर नियंत्रण पा लिया गया लेकिन अब तक कोरोना के सामने सभी निदान और उपाय बौने साबित हुये। इन सब बातों को सामने रख कर सोचने पर लगता है कि यह महामारी न तो मानवीय भूल से पैदा हुई है न ही मानवीय प्रयास में इसका कोई समाधान है यह दैवीय प्रकोप है और महाप्रलय का एक हिस्सा है आष्चर्य है कि हम एक अध्यात्म देश होते हुये भी इस महामारी के निदान के लिये कोई दैवीय उपाय नहीं कर रहें हैं। जिन मंदिरों और आस्था के केन्द्रो पर निरन्तर दैवी साधना होती रहती थी दैवी कृपा प्राप्त करने के लिये उन परम्पराओं पर भी प्रतिबन्ध लग गया है। मंदिरों की विधिवत पूजा और आस्था केन्द्रों की सामूहिक प्रार्थना और आरती सोशल डिस्टेंसिंग और लाॅकडाउन के कारण प्रतिबन्धित कर दिये गये। देश के प्राधमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी श्री आदित्य नाथ आस्था की जिस परम्परा से प्राद्रुभूत है उन पर से लगता है इनका विश्वास हट गया है। मेरा मानन है कि मोमबत्ती जलाने और थाली पीटने से सत्ता जनसमर्थन का ढोंग तो कर सकती है लेकिन सामूहिक प्रार्थना आरती और सामूहिक यजन से जो आध्यात्मिक उर्जा विश्व को मिल सकती है वह मोमबत्ती जलाने से नहीं मिल सकती। वैसे भी मोमबत्ती तो किसी के मरने पर उसकी कब्र पर जलाया करतंे हंै इस महामारी को रोकने के लिये यह उपाय कारगर नहीं होंगे। होना तो यह चाहिये कि विभिन्न सम्प्रदायों ने ऐसे संकटों से उबरने के लिये जिन दैवीय उपायों का उल्लेख है उन्हें अमल में लाया जाना चाहिये और सीमित संख्या में ब्रहमनिष्ठ विद्वानों के द्वारा कुछ ऐसे उपायों की रचना होनी चाहिये जो जब तक यह करोना अपनी अतिम मौत को प्राप्त न हो जाये तब तक इस वायरस के मारण मंत्र का अनुष्ठाान होना चाहिये । यह कहर आने वाले शारदीय नवरात्र तक विश्व पर वरपाता रहेगा ज्येतिषीय गणना की दृष्टि से गुरू पूर्णिमा के बाद यह बीमारी और भी भंयकर रूप ले लेगी और जिन लक्ष्णों से इसकी पहचान होती है उनको बदल कर यह बीमारी नया रूप भी ग्रहण कर सकती है। मैं तो व्यक्तिगत रूप से योगी और मोदी जी से अनुरोध करूँगा कि वह इस महामारी के समाधान के लिये देश के तमाम आचार्यों और धार्मिक विश्वास के लोगों से देश और प्रदेश के हर जिले में अनुष्ठानों का आयोजन करायें भले ही इसकी जिम्मेदारी सरकार स्वयं न लेकर धार्मिक संस्थाओं को सौंप दे लेकिन अब बर्दास्त के बाहर हो रहा है पानी सिर के उपर आ रहा है। मानव मन कितना अशांत और भयभीत है इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। तबलीगी जमात के लोगों ने जो गलती की वह कुछ नांदेड़ में सिक्खों ने भी की हमे भीड़ से बचना है लेकिन विशेष सावधानी से इन अनुष्ठानों का भी आयोजन किया जाना चाहिये। सृष्टि के संहार के अधिष्ठाता महाकाल भगवान शंकर हंै। इस महामारी से उनकी आराधना ही विश्व को मुक्ति दे सकती है यह अनुष्ठान द्वादस ज्योर्तिलिंगों और 51 शक्तिपीठों पर हो तो ज्यादा अच्छा है। उज्जैन के महाकाल में रूद्रार्चन का एक ऐसा अनुष्ठान होना चाहिये जो शारदीय नवरात्र की अष्टमी तक निरंतर चल सके और इन अनुष्ठानों में विश्व समुदाय के कल्याण के लिये उन्हीं मंत्रों का प्रयोग किया जाना चाहिये जो सर्वभूत हित के लक्ष्य की प्राप्ति को समर्पित हों। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस दैवी प्रकोप का निराकरण दैवी उपायों से ही सम्भव है भौतिक प्रयोग जो भी चल रहे है चलने चाहिये लेकिन उन्हीं पर निर्भर करना अब यह उम्मिद करना कि सिर्फ भौतिक उपायों से हम इस महामारी पर काबू पा लेगें गलत है।