लोकसभा के चुनाव में अप्रत्याशित परिणाम आने के कारण सत्तापक्ष और विपक्ष में काफी कुछ चल रहा है। परिवर्तन की बात हो रही है तो कहीं समायोजन की। पूर्व प्रत्याशित परिणामों के ठीक विपरीत जिस तरह उत्तर प्रदेश में बीजेपी को धक्का लगा है वह एक विचारणीय प्रश्न है। दूर दूर तक इस प्रकार के परिणामों का कोई पूर्वानुमान नहीं था। केन्द्र में भाजपा उत्तर प्रदेश के कारण पूर्ण बहुमत से पीछे रहा। यद्यपि सहयोग के समर्थन से एनडीए की सरकार केन्द्र में बन गई। पहली बार कोई गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री तीसरी बार सत्ता में आया। सीटों का कम ज्यादा होना इतना महत्व नहीं रखता चूंकि मत प्रतिशत अब भी भाजपा के पक्ष में है। यद्यपि सीटों की संख्या में आई है जो देश के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि देश के प्रति तमाम राजनीतिक दल अलग-अलग परिवारों के नेतृत्व में लड़ रहे थे और उनको यह सफलता मिली है उससे राष्ट्र की मजबूती पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। वे सब जातिवादी संगठन है और सीमित दृष्टिकोण लेकर सत्ता पर काबिज होना चाहते है। सत्ता उनका मुख्य लक्ष्य है तो चाहे जिस तरह से मिले। असामाजिक तत्वों के अप्राकृतिक संगठन में न तो कोई मजबूती होती है और न ही उनका कोई व्यापक उद्देश्य। जब कभी सत्ता प्राप्ति का उन्हें अवसर मिलता है तो वह उसका उपयोग राष्ट्रहित में न करके जाति परिवार और व्यक्ति के हित में करते है। देश की जागरूक जनता उनकी इस मनोदशा से परिचित है और इसलिए 2०14 और 2०19 तथा 2०17 तथा 2०22 में जो व्यापक समर्थन भाजपा को मिला। वह किसी व्यक्ति के हित में न होकर राष्ट्रहित में था और देश मे उनके कार्यकाल में यह अनुभव भी किया। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर देश की छवि में अप्रत्याशित विस्तार हुआ। जी-2० हो या रूस और यूक्रेन की लड़ाई तथा फिलिस्तीन और इजरायल का युद्ध इनके बीच भारत की भूमिका सराहनीय रही और जिसकी तारीफ न केवल उन देशों में विश्व के तमाम देशों में किया। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के प्रधानमंत्री को हाथोहाथ लिया गया। अंतराष्ट्रीय मीडिया में भारत को एक उभरते हुए एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देखा गया। देश की सीमाएं जहां पूरी तरह सुरक्षित रहीं वहीं आंतरिक्ष सुरक्षा भी पहले से कहीं अधिक सुव्यवस्थित और सुनिश्चित रही, जो भारत साम्प्रदायिक दंगो का केन्द्र माना जाता था वहां इन वर्षो में एक भी दंगा नहीं हुआ। जातियता और क्षेत्रीयता ने इस चुनाव में जो नाकारात्मक भूमिका निभाई उसका असर देश पर पड़ा और केन्द्र की मजबूत सरकार जो पिछले दस वर्षो से अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर सामाजिक सुरक्षा तक व्यापक सुधार करने में सफल रही। वहीं ग्रामीण विकास, गरीबों को राहत और आर्थिक प्रगति के अनेक अवसर भी इन दस वर्षो में देश को प्राप्त हुए। सड़कों से लेकर रेलवे और एयर कनेक्टिविटी में ऐतिहासिक सुधार हुआ और उनकी पहुंच वहां तक हुई जहां अब तक जाने का कोई समुचित मार्ग नहीं होता था। उन दूर छोटे-छोटे कस्बो तक वायुयान की सेवाएं उपलब्ध हुई। देश के साधन विहीन तबको तक सरकार की पहुंच बनीं, जिनके पास मकान नहीं थे। उन्हें न केवल मकान, शौचालय और बिजली, पानी की सुविधाएं प्राप्त हुई बल्कि चिकित्सा और सुरक्षा के क्षेत्र में आयुष्मान कार्ड, नए-नए मेडिकल कालेज व हास्पिटल खोले गए। अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान जो दिल्ली तक सीमित था उसे देश के तमाम हिस्सो तक पहुंचाया गया और प्राय: हर राज्य में एक से अधिक एम्स की शाखाएं स्थापित की गई। हार्ट और फेफड़ो के मरीज महंगी चिकित्सा के कारण मौत के शिकार हुआ करते थे उन्हें आयुष्मान कार्ड की संजीवनी मिली। ग्रामीण क्षेत्रों में गैस चूल्हों की घर घर तक पहुंच हुई और उन्हें जब भी जरूरत हुई पर्याप्त मात्रा में सिलेण्डर उपलब्ध कराये गये। तेल कंपनियों ने पिछड़े क्षेत्रों में भी सीधे गैस कनेक्शन की योजना बनाई और उसमें उन्हें व्यापक सफलता मिली। विद्युत आपूर्ति का संकट दूर हुआ। बिजली और पेट्रोलियम की कमी को पूरा करने के लिए गैर पारंपरिक स्त्रोतों को बढ़ावा दिया गया और सोलर तथा पवन एनर्जी के द्वारा बिजली वहां तक पहुंचाई गई जहां अब तक तार के खम्बे नहीं पहुंचे। इसी तरह पेट्रोल और डीजल की कमी को पूरा करने के लिए एथेनॉल का प्रयोग किया गया इसकी उपलब्धता धीरे-धीरे बढ़ रही है। इस तरह आयातित प्राकृतिक ईधन पर हमारी निर्भरता बढ़ी और कच्चे तेल के आयात की जरूरत कम हुई। फिर भी इस मोर्चे पर देश पीछे नहीं रहा और ऐसे देशों से कच्चे तेल का आयात संभव हुआ जहां इसके पहले हमें इस क्षेत्र में पैर रखने की जगह नहीं मिलती थी। सोवियत रूस इसका उदाहरण है। सेना सुरक्षा मे हम न केवल सीमांत क्षेत्रों को सुरक्षित रखने में सफल रहे बल्कि रक्षा संसाधनों में भी हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े। तमाम डिफेंस कॉरिडोर बनाकर हम विदेशी निवेशकों को भारत में अपनी पूंजी लगाने का अवसर प्रदान किया। इस तरह न केवल प्रदेशों की बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश पहली बार इतनी बड़ी संख्या में संभव हुआ। रक्षा संसाधनो में जहां पहले तमाम देशों से आयात करते थे वहीं अब हम न केवल अपने सुरक्षा के लिए पर्याप्त संसाधन बनाने में सफल रहे बल्कि तमाम दूसरे देशों को निर्यात भी किया।
देश के लोगों ने पूंजी निवेश की प्रगति को प्रोत्साहन मिला और अलग अलग प्रकार के अनेक उद्योगों को विकसित होने के लिए उचित अवसर प्रदान किया गया। कुल मिलाकर सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ हम राष्ट्र के विभिन्न मोर्चो पर स्वाबलम्बी बनने की दिशा में आगे बढ़े। खाद्यान्न उत्पादन में अब हमें किसी देश की ओर नहीं देखना है बल्कि देश के स्वाभिमानी कृषकों ने अपने परिश्रम और प्रतिभा से देश को खाद्यान्न के मामले में न केवल आत्मनिर्भर बनाया बल्कि देश के 8० करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की ताकत देश को दी। कोरोना काल में जहां विश्व त्राहि त्राहि कर रहा था वहीं भारत में इस महामारी से बचने के जो उपाय किये गये वह बड़े कारगर साबित हुए। अपने ही देश में उत्पादित दवाओं से न केवल अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा की बल्कि तमाम देश भारत की उत्पादित वैक्सीन से अपने देश के नागरिकों को बचाने की चेष्टा में हमारा सहयोग लिया। देश की अर्थव्यवस्था विश्व के आर्थिक इतिहास में पहली बार पांचवे स्थान पर पहुंचा है और विदेशी मुद्रा भण्डार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। महंगाई और बेरोजगारी की जो बात कही जा रही है उस पर काबू पाने का हर संभव प्रयास करता देश दिखाई पड़ा। महंगाई का रोना तो लोग रोते हैं लेकिन जिस तरह वेतन वृद्धि और प्रति व्यक्ति के आय में आशातीत वृद्धि हुई है बल्कि देश का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा से ऊपर देश की प्रगति की यात्रा में अपनी भूमिका दर्ज की। इस तरह कुल मिलाकर देखा जाए तो चुनाव की हार जीत एक अलग चीज है लेकिन विकास, समृद्धि, सुरक्षा और संसाधनों की दृष्टि से भारत आत्मनिर्भर हुआ। परिवार और सम्प्रदाय वाद की राजनीति जब दम तोड़ रही थी तो उस समय देश के तमाम राजनैतिक दल और उनके नेता जो विभिन्न घोटालो के हिस्से बन चुके थे उन्हें संगठित होकर प्रगति के इस बढ़ते कदम को रोकने का जो दुस्साहस किया उसका जवाब भी देश की जनता ने दे दिया। आज जहां हम चुनाव में पिछड़ गये हैं वहां हमें उन कमियों को दूर करना होगा जिनके कारण राष्ट्रीय प्रगति में वाधा पड़ रही है। स्वार्थ की राजनीति खत्म होनी चाहिए और राष्ट्रहित में एकजुट होकर आगे बढ़ने की जरूरत है। क्योंकि यही वह समय है जब भारत विश्व जनमत में अपनी विश्वसनीयता कायम कर सकता है और राष्ट्र के विभिन्न मंचों पर प्रगति के नए आयाम दर्ज कर सकता है। राजनीतिक कार्यकर्ता अगर अहंकार और अस्मीता से ऊपर उठकर व्यापक जनहित में एक साथ मिलकर चलने का मन बना लें तो वर्तमान स्थिति में भारत को विश्वगुरू बनने से कोई रोक नहीं सकता।