आज 6 अप्रैल है सामान्य दिनों की तरह वर्ष का एक दिन लेकिन आज से 44 वर्ष पूर्व जब देश के दक्षिणी छोर समुद्र तट से श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने एक संदेश देश को देश के आने वाले भविष्य को देश की वर्तमान पीढ़ी को और शासन के विदेशी तौर तरीकों से आहत और परेशान उस भारत के लिए जो वर्ष 47 से राष्ट्रीय स्वाभीमान और पहचान की आजादी की प्रतीक्षा कर रहा है। उन्होंने कहा था अंधेरा छटेगा सूरज उगे गा और कमल खिलेगा। तब उन तमाम कार्यकरताओं और जनसाधारण को अटल जी का यह संदेश एक सपने से ज्यादा कुछ नहीं लगा था। उपस्थित जनसाधारण के लिए यह एक सपना था लेकिन देश के लिए एक संकल्प राष्ट्र को समर्पित और भारत माता के समर्पित सेवकों को लगा था कि अभी सबकुछ अंधेरे में ढूबा नहीं है देश को जिस उजाले की जरूरत है उसकी सम्भावना बांकी है। ऐसे ही 6 दिसम्बर को जब अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि पर विदेशी कलंक का खण्डहर टूटा था तो उसके पहले भी कभी किसी को विश्वास नहीं था कि एक दिन यह खण्डहर हटेगा और आस्था के आकाश में रामलला का सूर्य उदय होगा। यह दोनो तिथियां जन सामान्य को क्या संदेश देती है आज की परिस्थतियों में उन्हें समझना जरूरी है। 15 अगस्त 1947 को देश में जब सत्ता परिवर्तन हुआ था तो देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हजारों स्वाधीनता सैनिकों और भारत माता के लिए शहीद होने वाले रण बंाकुरों के मन में जिस आजादी का सपना था वह सत्ता और स्वार्थ के अंधेरे में कहीं खो गया था। देश को जाति महजहब संप्रदाय और भाषा में बांटने की लगातार राजनैतिक कुचेष्टा होती रही चुनाव होते रहे सरकारें जाती रही आती रहीं लेकिन देश को जिस सांस्कृतिक स्वाधीनता की जरूररत थी। देश के आस्था के केन्द्रों को पुनः प्रतिष्ठित करने की जरूरत थी और सर्वभूतः हिते की साधना करने वाली व्यावस्था का निमार्ण करना था वह नहीं हो पा रहा था। हर जगह हत्या हिंसा लूट मार आतंक और अलगावाद के विरोध और समर्थन में हमारे देश की विधायी संस्थायें लड़ती रही और टकराती रही निर्धारित समय से पहले बर्खास्त या भंग होती रही लेकिन समुद्र तट का वह संकल्प जो भारत के अजातशत्रु श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आज 6 अप्रैल सन 1980 को लिया था तब नहीं लगता था कि जय प्रकाश नारायण की विफल हो चुकी क्रांति पर तमाम दलों को मिलाकर जनतापार्टी जब बिखर जायेगी जब उस धूल में फूल की कल्पना क्या कोई कर सकेगा लेकिन साहस था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का और समर्थन मिला देश की धर्मप्राण हिन्दू जनता का।
देश ने करबट ली राम लाला की उस प्रतिष्ठा के लिए जिसको लेकर गांधी ने देश को आजादी दिलाई थी और जनमानस में राम राज्य का संकल्प का बीज बोया था जो गुलामी इन मंदिरों को तोड़ती हुई आई थी और आजादी के लम्बे कालखण्ड के बाद भी प्रदेश की सत्ता का ध्यान नहीं गया तब देश की आध्यात्मिक चेतना ने ध्वस्त हो चुके श्री राम मंदिर के अवशेष से ही आस्था के आकश में छाये निराशा के बादलों को दूर करने और समर्पण के सूर्य उदय होने और देश की सनातन संस्कृति के उद्धार के लिए अयोध्या के राम मंदिर को ही चुना श्री राम जन्मभूमि की मुक्ति का यह संघर्ष देश की पराजित और पराधीन मानसिकता से मुक्ति के लिए आगे बढ़ा जैसे गांधी ने देश की आजादी के लिए श्री राम नाम का अलंबन लिया था वैसे ही सनातन संस्कृति की प्रतिष्ठा और संस्कार हीन सत्ता लोलूपों के राजनैतिक षडयंत्र से मुक्ति के लिए आगे बढ़ा
आज अयोध्या में अपनी जन्म भूमि पर श्री रामलला विराजमान है। 500 वर्षोे की खूनी इतिहास का अंधेरा अयोध्या दीप दिवाली के उजाले में खो गया है विदेशीयों का आतंक आज देश वासियों के लिए एक चुनौती बन गया है। आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का सूर्य देश की जन मानस में विश्वास का कमल पैदा किया आज देश हर मोर्चे पर गुलामी के अंधेरे को छांटता हुआ देख रहा है और अपनी अस्मिता के आकाश में अपने विराट वैभव का सूर्य खिलता देख रहा है। देश की प्रतिष्ठा का यह कमल आज भारत के उन चेहरों में बिम्बित होता दिखाई पढ़ रहा है जो कभी विदेशी मानसिकता के लोगों के गुलामी का ढो रहा था विश्व गुरू होने का और विश्व बंधुत्व के संकल्प का जनमानस में सहजता से प्रकट होता दिखाई पड़ रहा है एक संगठित ताकत जन साधारण को अपनी ओर आकर्षित कर रही है लोक विरोधी ताकतें अपने अस्तिीत्व के बचाव के लिए गठबंधनों का असफल प्रयास कर रही है अब समय आ गया है जब देश का हर आदमी अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए तथा देश के प्रति उसके क्या कर्तवय है यह समझे और बदलते हुए विश्व में भारत का उभरता अस्तित्व उसके विश्व बंधुत्व के संकल्प को होता दिखाई पड़ रहा है इसलिए मैं 15 अगस्त 1947 से कहीं अधिक महत्व 6 अप्रैल और 6 दिसम्बर को देता हूं क्योंकि इन दोनों तिथियों से देश को वह मिला है जो 15 अगस्त 1947 से नहीं मिल सका था