प्रधानमंत्री पद का उचित दावेदार

आडवाणी जी ने आज अपने एक बयान में जो सम्भवता उन्होंने अपने जन्म दिवस पर सोच समझ कर दिया हो स्वयं को प्रधानमंत्री की दावेदारी से अलग कर लिया वैसे ी लोकतंत्र में पद की अपेक्षा तो की जा सकती है, लेकिन दावेदारी का सवाल तब उठता है जब उसे बहुमत प्राप्त हो चुनाव पूर्व इस ् प्रकार की घोषणा निश्चित ही उस हलचल का शांत करने के लिये की गयी लगती है जो गत कई महीनों से मीडिया में चल रही है। प्रधानमंत्री या किसी भी देश और राज्य का प्रमुख होने का दावा वही कर सकता है जिसे जनता ने अपना आर्शीवाद दिया हो। आडवाणी जी इस कसौटी पर खरे उतरते है और अन्य देश के कई हिस्सों से लोक सभा का चुनाव लगातार लड़कर जीता भी है, काफी लम्बे अरसे से वह सदन में पिछले दरवाजे से कभी नहीं आये। राज्यसभा अथवा विधानपरिषद् का सदस्य सांसद अथवा विधायक तो कहा जा सकता है, लेकिन न तो जनता उसे चुनती है और न ही वो जनसाधारण के प्रति जबावदेह होता है। प्रायः देखने में ये आया है कि जब जब कोई प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री जो लोकसभा अथवा विधानसभा के लिये न चुना गया हो राज्यसभा और विधानपरिषद के दरवाजे से सत्ता पर काबिज हुआ हो वह अपने पद का उपयोग जन भावनाओं और जन आकांशाओं के लिये पूरी तरह नहीं कर सका है। वह व्यक्ति पार्टी अथवा पार्टी के नेता के प्रति बफादार भले रहा हो लेकिन जन साधारण की जरूरतों के प्रति संवेदनशील नहीं रहा है। श्री पी०वी० नरसिंम्हा राव और श्री मनमोहन सिंह इस विडम्बना के ज्वलंत उदाहरण है। विश्व के जानेमाने अर्थशास्त्री देश में मंहगाई और भ्रष्टाचार राकने में वह बुरी तरह असफल रहे है, वह आंकड़ों और आर्थिक मामलों के बाजीगर तो है और एक बाजीगर करामात दिखा तो सकता है, लेकिन कर नहीं सकता। उसके करामात में जो पैसे दिखाई पड़ते है वह उसका पेट भरने के लिये भी काफी नहीं होते। आर्थिक सुधारों के नाम पर जिस तरह देश का धन कुछ मुठ्ठी भर कम्पनियों ओर भ्रष्ट व्यक्तियों के हाथ में सीमित होकर रह गया वह श्री मनमोहन सिंह की आर्थिक विफलता नहीं तो और क्या है। यह कौन नहीं जानता की पैसे पेड़ पर नहीं लगते लेकिन लोगों का पेट कितने में भरता है ये बात दुनिया जानती होगी लेकिन प्रधानमंत्री के वित्तीय सलाहाकार श्री मोनटेक सिंह को पता नहीं है।

इसलिये मुझे लगता है इस समय प्रधानमंत्री के जितने भी दावेदार है उन्हें पहले जनसाधारण का आर्शीवाद लेना चाहिए। बीजेपी के नेताओं में जो जनाधार आज श्री नरेन्द्र मोदी जी और श्री लालकृष्ण आडवाणी जी के पास है वह कम से कम किसी के पास नहीं। देश को जिस तरह का व्यक्ति आज की परिस्थतियों में देश का नेतृत्व करने के लिये चाहिये उन्हीं में से कोई अगर आगे आता है तो जन सर्मथन भी मिल सकता है, और देश की व्यवस्था बदलने के लिये आवश्यक कुछ कदम भी उठा सकता है। भ्रष्टाचार का एक छोटा सा दाग भी जिस व्यक्ति के चरित्र–चादर पर लगा हो कम से कम आज वह भ्रष्टाचार से लड़ने की किसी भी मुहिम को अंजाम तक नहीं पहुंचा सकता। रामदेव और केजरीवाल उसके उदाहरण है। अन्ना हजारे आज भी लोगों के समझ में आ रहे है क्योंकि वे एक बेदाग व्यक्तित्व के उसी तरह धनी है जिस तरह राजनैतिक क्षेत्र में श्री आडवाणी नितीश और श्री मोदी जैसे लोग है। इसलिये आडवाणी जी ने अपनी ओर से दावेदारी भले वापस ली हो लेकिन देश की जनता को उनसे उम्मीद है।