मंत्र की शक्ति

प्रयाग के इस कुम्भ में कुछ प्रमुख संतों ने देश और विश्व में व्याप्त अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार और हिंसा के प्रति चिंता व्यक्त करते हुये इन सब का आध्यात्मिक निदान खोजने का प्रयास किया कई बैठकें हुई विमर्श हुआ प्रयास ये किया गया कि इस चर्चा को तब तक मीडिया और प्रचार से दूर रखा जाये, जब तक कोई ठोस योजना सामने न आये कांची के जगतगुरू और काशी तथा अयोध्या के विद्वान संतों की यह राय बनी कि रावण के समय में जब मानवता कराह उठी, देवता भयभीत हो गये और धर्म तथा संस्कृति का खुला अपमान किया जाने लगा देश में अनेक राजाओं के रहते हुये भी जब रावण के आतंक और अनाचार का सामना नहीं किया जा सका तो उस पराजय से उबरने के लिये सामुहिक रूप से भगवान के नाम का आश्रय लिया गया। उस मान का ही प्रभाव था कि रावण जैसी शक्तियों का अंत हुआ, मानवता को राहत मिली और विश्व में शांति और सद्भाव का वातावरण बना। इसी तरह पराधीनता के काल खण्ड ने भी जब विदेशी आक्रांताओं का अत्याचार देश के आस्था के केन्द्रों और संस्कृति के ध्वज–वाहकों को मटियामेट करने के इरादे से आगे बढ़ा तो उसे भी रोकने में देश के राजा–महाराजा, राजनैतिक सोच के लोग हर मोर्चे पर पराजित ही होते रहे। उस समय भी महात्मा गांधी जैसे लोगों ने देश की आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने का एक सामूहिक प्रयास किया और उन लोगों ने भी भगवान के नाम का ही आश्रय लिया "रघुपति राघव राजा राम,पतित पावन सीताराम" ये गांधी की प्रार्थना के केवल कुछ शब्द नहीं थे बल्कि इस मंत्र ने देश को न केवल संगठित किया बल्कि देश के तरूणों में आजादी के प्रति एक जज्बा भी पैदा किया। देश के हर हिस्से से रधुपति राघव राजा राम की आवाज आने लगी और विश्व ने एक चमत्कार देखा कि बिना किसी हथियार सेना और शस्त्र के वह अंग्रेज जो विश्व के दो तिहाई हिस्से पर राज कर रहे थे। देश की सत्ता देश वासियों को सौंप कर चले गये। ऐसे ही जब कांग्रेस के कुशासन से देश की व्यवस्था एक बार फिर लूट–खसोट और हिंसा का शिकार बनी तब फिर राम जन्म भूमि के बहाने देश को जगाने का एक अवसर देश के हितैषियों को समझ में आया और उन्होंने श्री राम जय राम जय जय राम के महा मंत्र को संबल बनाया और देश के हर गली कूचे तक इस मंत्र को जागरण हुआ। यह मंत्र, मंत्र न होकर सम्मान और स्वाभीमान का स्लोगन बन गया देश की संसद भी इस आह्वाहन से बच नहीं सकी। वर्षों से चली आ रही कुशासन की जड़े हिली और देश में व्यवस्था परिवर्तन हुआ। लेकिन काई की तरह यह अनाचार और भ्रष्टाचार देश की अस्मिता के पानी पर फिर दा गया, इस धुध को दूर करने के उपयों के रूप में संतों ने यह तय किया कि एक बार फिर देश भर में श्री राम जय राम जय जय राम की गूंज सुनाई पड़नी चाहिये। ११ अप्रैल की वर्ष प्रतिपदा से १३ मई अक्षय तृतीय तक १३ करोड़ नाम जप का निश्चय हुआ। मैं पूरी निष्ठा के साथ यह महशूस करता हूं कि पहले की तरह निजी स्वाथर्थों से उपर उठकर देश निर्धरित अवधि में नाम जप के इस अनुष्ठान से जुड़ता है तो व्यवस्था में व्याप्त इन विकृतियों को दूर करने में देश को कामयाबी अवश्य मिलेगी।