121 वर्षों के बाद भारत की प्रतिभा का अहसास विश्व को एक बार पुनः हुआ जब भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्तराष्ट्र महासभा और मेडिसेन स्क्वायर गार्डेन में जुटे हजारों हजार लोगों को संबोधित किया। लोगों को ऐसा लगा कि भारत का वह आध्यात्मिक वैभव कायम है, जो वर्षों पूर्व विवेकानंद के रूप में अमेरिका की धरती पर अवतरित हुआ था। भारत को आज वह व्यक्ति नेतृत्व के लिये मिल गया जिसकी उसे वर्षों से जरूरत थी। प्राकृतिक और भौतिक संपदाओं से भरपूर आध्यात्मिक भारत के पास किसी वस्तु की कमी नहीं थी। वह सब प्रकार से संपदाओं और संभावनाओं से भरपूर था। उसे जरूरत थी तो एक उस व्यक्ति की जो गांधी, गौतम और विवेकानंद के सपनों को साकार करने के लिये भारतीय राजनैतिक क्षितिज पर उतरता। यह देश जाति, पंथ और भाषा की संर्कीणताओं में कभी विश्वास नहीं करता सभी प्रकार की बोलियों रीत–रिवाजों और लोक प्रथाओं को अपने सीने में सहेजे हुये एकात्म मानववाद का संबाहक रहा है। विश्व को एक परिवार की दृष्टि में देखने की दृष्टि इसके पास थी। प्राणीमात्र के कल्याण की कामना इसके सांसों में बसी हुयी थी। यहां की नदियों में जल की जगह अमृत बहा करता था। यहां के पहाड़ों पर देवताओं की आत्मा बसती थी। यहां के पेड़ों में जन सामान्य दिव्यता का अनुभव करता था। यहां के नर में राम और नारी में सीता का दर्शन होता था। धरती हमारी मां होती थी, और धर्म हमारा पिता। हमारी श्वासों में शिव का संस्कार होता था तो हमारी हर चेष्टा राम और कृष्ण के आदर्शों से प्रेरित और प्रभावित होती थी। लेकिन यह सब होते हुये भी हम गरीब दलित पिछड़े हुये जंगली और वनवासी थे। हमारा देश काले जादू और सांप सपेरों का देश कहा जाता था। सदियों तक हमको गुलाम बना कर रखा गया। आजादी के बाद जिस सपने को अपनी आंखों में संजोकर हजारों स्वाधीनता सैनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी । बिना हथियार उठाये हमने अपने अहिंसा और अध्यात्म के बल पर बड़े बड़े हथियार वालों को पीछे हटने को मजबूर किया। वह सपना अब तक साकार नहीं हो सका था। हम एक अशिक्षित, बेरोजगार, भूखे नंगे हर संपन्न देश के सामने भिक्षा पात्र लेकर खड़े भिखारी बन गये थे। हम अपने प्राकृतिक संसाधनों और आध्यात्मिक उर्जा का उपयोग स्वाधीन भारत को श्रेष्ठ भारत बनाने के लिये उपयोग नहीं कर सके। लेकिन देश की माटी ने करवट ली है, और मोदी जब मेडिसेन स्क्वायर गार्डेन में अपनों के बीच अपनी बात कह रहे थे, तो लग रहा था कि भारत एक बार फिर विश्वगुरू बनकर दुनिया के मार्गदर्शन के लिये तैयार है, जिसकी विश्व को आवश्यकता है। वर्षों से अपनी जरूरतो से जुझते भारत को दुनिया के दूसरे लोगों की जरूरत पर विचार करने का कोई अवसर ही नहीं मिला लेकिन मोदी विश्व को विश्वास दिलाने में सफल रहे कि भारत वह देश है जो विश्व की जरूरत को अपनी जरूरत और विश्व के विकास को अपनी प्रगति के रूप में देखता है। आज चीन हो या जापान अमेरिका हो या पाकिस्तान सब के स्वर बदल रहे है, और मोदी के बढ़ते हुये कदमों का ये सभी देश जिस उल्लास के साथ खैरमकदम कर रहे है। वह भारत के एक नये सबेरे का संकेत है। आने वाला भविष्य भारत का है। हम एक ऐसे विश्व के निर्माण की जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ रहे है जो हम सब के लिये एक परिवार होगा। विश्व के हर देश का प्रत्येक प्राणी हमार परिजन होगा। हथियारों की होड़ समाप्त होगी और विकास के नये रास्ते खुलेंगे। हम भोग के हर वैविध्य को न केवल प्राप्त करेंगे बल्कि उसके हर असंतुलन को योग के द्वारा संतुलित भी करेंगे। भारत हिंदू राष्ट्र बने या न बने लेकिन विश्व हिन्दू जीवन शैली को अवश्य स्वीकार करेगा। युद्ध के उन्माद और शत्रुता के विनाश विष से विश्व मुक्त होगा और भारत जो सदैव से अमृत का साधक रहा है। अपनी साधना से विश्व की तमाम संस्कृतियों को अमरत्व प्रदान करेगा।
मैं नरेन्द्र मोदी के बढ़ते हर कदम का स्वागत करूंगा और भारत के प्रत्येक व्यक्ति से आग्रह करूंगा कि वह मोदी को राजनैतिक चश्में से नहीं बल्कि भारतीयता की खुली आंखों से देखे।