स्वाधीनता का अर्थ

भारत एक स्वाधीन राष्ट्र है आज उसके स्वाधीनता के ६५ वर्ष पूरे हो गये है और ६६ वें वर्ष प्रारम्भ हो रहा है स्वाधीनता संघर्ष में अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को आज देश नमन कर रहा है जिन्होंनें अपने प्राण हथेली पर रख कर मातृभूमि की स्वाधीनता के लिये स्वयं का बलिदान किया उनके कुछ सपने थे हम स्वाधीन भारत के नागरिकों की यह नैतिक जिम्मेदारी थी कि हम उन सपनों को साकार करने का प्रयास करते हम उनके सभी सपनों को भूल गये है, ऐसा नहीं है विविध क्षेत्रों में भारत ने विकास में समृद्धि के नये किर्तिमान स्थापित किये है आज हम खाद्‍न्न के मामले में आत्म निर्भर राष्ट्र है यही सही है कभी हम भुखमरी के शिकार थे और पीएल 480 के अन्तर्गत आयातित उस लाल गेहूं की रोटियां खाने को मजबूर थे जिसे अमेरिका के सुअर नहीं खाते थे, तब से लेकर अबतक देश की आबादी ३ गुना बढ़ी है लेकिन हम व्यवस्था की विसंगति के कारण भले भूखें रहते हों लेकिन खाद्‍न्न उत्पादन के मोर्चे पर देश के किसानों ने जो सफलता हमें दी है वह दूसरे तमाम देशों से बहुत अच्छी है। सामरिक दृष्टि से भी हम पड़ोसी देशों की धमकियों और तुष्ट राष्ट्रों की भारत विरोधी गतिविधियों को नाकाम करने में सक्षम हुये है। हम हमलावर तो नहीं है लेकिन आज हमारी हैसियत हर हमले का जबाब देने में पूरी तरह सक्षम है। चिन्ता केवल एक बात की है कि देश की व्यवस्था में प्राप्त संसाधनों का बेहतर स्तेमाल नहीं किया है नतीजतन गोदामों में गेहूं सड़ रहा है और लोग भूखे मर रहे है एक ही साथ देश सूखा और बाढ़ का शिकार होता है, बाढ़ के पानी का उपयोग सूखे से लड़ने के लिये हो ऐसा कोई इंतजाम देश नहीं कर सका है। शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है लेकिन अपेक्षित सफलता से हम बहुत पीछे है आज भी देश का एक तिहाई हिस्सा शिक्षा से वंचित है, दो तिहाई हिस्सा उच्चशिक्षा से बंचित है। हम सर्व शिक्षा का अभियान चलाते है देश का राष्ट्रपति देश के नाम अपने सम्बोधन में शिक्षा सबके लिये गुहार लगाता है। लेकिन देश का नौजवान जब प्रवेश के लिये कहीं जाता है तो हर जगह उसे हाउसफुल का बोर्ड मिलता है इसे बिडम्बना ही कहा जायेगा कि शिक्षा सबके लिये है सबको शिक्षित होना चाहिये लेकिन उसके लिए वह न विद्‍यालय दे पाती है और न शिक्षा । प्रवेश के लिए देश की तरूणाई सड़कों पर धक्के खा रही है और धरना प्रदर्शन के लिये मजबूर हो रही है। देश की इस बड़ी उर्जा का लाभ न ले पाने की विवशता समाज को व्यथित और परेशान कर रही है। सरकारें लैपटाप बांटने की बात तो करती है लेकिन उन बच्चों के लिए विद्‍यालय भवन, फर्नीचर, प्रयोगशाला, पीने का पानी और सबसे बड़ी बात शिक्षक देने में पूरी तरह गैर जिम्मेदार साबित हो रही है। शिक्षा और शिक्षक राष्ट्र निर्माण की भूमिका में पूरी तरह नदारद दिखाई देते है हमारे देश की प्रतिभायें दुनिया के तमाम देशों को समृद्ध करने में अपनी प्रतिभा का उपयोग कर रहे है वहीं प्रतिभायें अपने देश में सिस्टम और नीतियों के अभाव में राष्ट्र रचना के कार्य से विमुख हो कर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलग्न हो रहे है कलम और किताब की मांग के लिये उठे हाथ यदि खाली लौटा दिये जायेंगे तो उन्हें हथियार उठाने से कोई रोक नहीं सकता।

आज नक्सलवाद, अतंकवाद, अलगाववाद, संप्रदायवाद, ये अलग–अलग वे नाम है जिनको माध्यम बनाकर देश का युवक अपना क्षोभ व्यक्त कर रहा है जिन्दगी के संसाधन देश के पास है लेकिन उनके उपयोग के लिये जिन उदार नीतियों की देश को आवश्यकता है उनको जुटाने में असफल है । देश किसी एक की सम्पत्ति नहीं है और देश की स्वाधीनता किसी एक की जिम्मेदारी नहीं इसलिये देश से हमें क्या मिलेगा यह सोचने से पहले हमें यह सोचना होगा कि हमने अब तक देश को क्या दिया है और क्या देना चाहते है। देश की सुरक्षा और देश की समृद्धि जन साधारण के सहयोग से ही सम्भव होगी कोई एक रामदेव और अन्ना हजारे अकेले अपने बल पर अपना कद तो बढ़ा सकते है लेकिन देश को इन दुराग्रहों से मुक्त नहीं करा सकते इस लिये इन दोनों व्यक्तियों के द्वारा आभूत आंदोलन जन आंदोलन नहीं बन सके वह अन्ना और रामदेव के आन्दोलन बन कर सिमट गये । ये कुछ ऐसे ही रहा जैसे घटिया माल बेचने वाला मजमा लगाता है और मजमे के हाथ अपने वायदे बांटकर स्वयं लाभ उठाता चला जाता है। हमें स्वाधीनता सेनानियों को ये विश्वास दिलाना होगा जो समय बीता वह बीत गया लेकिन अब देश का वक्त बरबाद नहीं होने देगें और देश का गौरव बढ़ाने के लिये हम अपना जीवन देश को समर्पित कर देंगें। जैसे देश के बहादुर शहीदों ने किया।